Tuesday, 2 August 2011

केनोपनिषद्


                                                             C सर्वाधिकार सुरक्षित
 केनोपनिषद् / बसन्त
    AUTHOR OF HINDI VERSE
 PROF. BASANT PRABHAT JOSHI

प्रथम  खण्ड


किसका बल है प्राण में
किसका बल है चित्त
वाक् इन्द्रियाँ कर्म रत
किस बल से हे श्रेष्ठ .१.



श्रोत्र का भी श्रोत्र जो है
चक्षु का भी चक्षु है
मन का कारण है वही
और प्राण का प्राण
ज्ञानी कारण जानकर
अमृत तत्त्व को प्राप्त .२.



गो गोचर से है परे
प्रकृति परे परब्रह्म
नहिं प्रवेश इन भूत का
भासित ब्रह्म प्रकाश .३.



जो वाणी से प्रकट है
वाक् जान जो ज्ञान
नहिं स्वरूप वह ब्रह्म का
परम, वाक् वह जान .४



उसका मन से बोध नहिं
नहीं बुद्धि से प्राप्त
मन बुद्धि से पूज्य जो
नहीं परम पर ब्रह्म.५.



नहीं विषय है चक्षु का
जिसको  देखें चक्षु
जान न उसको ईश नहिं
जिसको देखें चक्षु .६.



श्रोत्र न उसको सुन सके
परम  परे यह श्रोत्र
जिसको जाने श्रोत्र से
नहीं परम परब्रह्म .७.



चेष्टा करता प्राण से
कभी ना जानो ब्रह्म
जो प्राणों का प्राण है
जान उसे परब्रह्म .८.






दूसरा खंड 

जो तू कहता जानता
तू जाने सो अल्प
तू स्वरूप परब्रह्म का
ज्ञान तोर अति श्रेष्ठ.१.


मैं जानूँ परब्रह्म को
इसका  नहीं  है मान
मैं नहिं जानूँ ब्रह्म को
इसमें नहिं विश्वास
उसे ज्ञान परब्रह्म का
जानो मम विश्वास .२.



ब्रह्म विषय नहिं बुद्धि का
उसका मत है शुद्ध
जो जाने वह विज्ञ है
सो विज्ञानी मूढ
ब्रह्म ज्ञान का मान नहिं
ब्रह्म नहीं अपरोक्ष .३.



प्रतिबोध को तू समझकर
अमृत बोध को प्राप्त
आत्म से प्रतिबोध पाकर
अमृत पाता ज्ञान से .४.



नर देह में जिसने स्वयं का
बोध को पाया नहीं
वह विनाश के द्वार में है
यह समझते धीर हैं .५.



मृत्यु से पहले समझ कर
भूत भूत में बोध कर
अमृत को पाते विलक्षण
श्रेष्ठ तू यह जान ले .६.


तीसरा और चौथा खंड

प्रथम और  दूसरे खण्ड में दिए ब्रह्म ज्ञान को द्रष्टान्त द्वारा समझाया है. देवासुर संग्राम में असुरों पर देवताओं  द्वारा विजय प्राप्त करने के पश्चात देवता अभिमान वश उसे अपनी विजय मानने लगे. तब देवताओं के सामने एक यक्ष प्रकट हुआ. वार्तालाप के पश्चात यक्ष ने एक सूखा तिनका डाल दिया. अग्नि देव उस तिनके को सारी ताकत लगाकर जला नहीं पाये. वायु देव उड़ा नहीं सके. फिर देवराज इन्द्र वहाँ पहुंचे. उनके पहुँचते ही यक्ष अन्तर्धान हो गया. इन्द्र वहीं खड़े रहे फिर भगवती उमा के पास गए. तब भगवती उमा ने बताया.  परमात्मा यक्ष रूप धारण करके आये थे. उन्होंने तुम्हें अहसास कराया कि इस संसार में जिस किसी में जितना भी बल, विभूति है वह उन परमात्मा का तेज है. अग्नि, वायु, इन्द्र आदि की जो भी शक्ति है वह उनके कारण ही है. उनके बिना अग्नि  देव एक सूखे तिनके को नहीं जला सके. वायु देव उड़ा न सके. दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है, परमात्मा का बोध ज्ञान शक्ति द्वारा ही हो सकता है. यही भगवती उमा हैं. इन्द्र आकाश देव हैं, हमारा चित्त आकाश के सामान है. ज्ञान द्वारा बोध होने पर चित्त में ही स्वरूप अनुभूति होती है. यही इन्द्र द्वारा परमात्मा का साक्षात्कार है.
        ॐ तत् सत्                  




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