Sunday, 1 January 2012

चैतन्य और चेतना-Prof. Basant Joshi


  चैतन्य और चेतना
दर्शन के जानकार चैतन्य और चेतना को एक स्वीकारते हुए स्वयं भ्रमित हैं और अपने गुरुडम से अपने अपने शिष्यों को भ्रमित कर रहे हैं. चैतन्य और चेतना दोनों मिलते जुलते शब्द हैं परन्तु इन दोनों में धरती-आसमान सा अंतर है. चैतन्य मूल तत्त्व है यह परम ज्ञान की शुद्धावस्था है, यही आत्मतत्त्व और परमात्मतत्त्व है. चेतना एक विकृति है. यह ज्ञान की उपस्थिति से प्रकृति का परिणाम है. चेतना के माध्यम से सृष्टि अथवा पदार्थ में छुपा चैतन्य स्वयं को परिलक्षित करता है.
चेतना एक प्रकार की शक्ति है जिससे मनुष्य अथवा अन्य प्राणी संवेदना महसूस करते हैंजो अनुकूल परिस्थिति होने पर प्रकृति में उत्पन्न होती है और प्रकृति ( बुद्धि ) जाग्रत हो जाती है, 

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