श्री कृष्ण
श्री भगवान तुम कहते हो मैं तेरी आत्मा हूँ, मैं ही तेरा वास्तविक मैं हूँ. ॐकार मेरा नाम है. मैं जब भी तेरे अंदर प्रकट होता हूँ तेरी प्रकृति और तेरे जीव भाव का नाश कर देता हूँ.
पर मैं तो आंख का अंधा कान का बहरा हूँ, मेरा अहँकार इतना बड़ा है कि मैं अपने श्री कृष्ण की बात भी नहीं मानता. मुझे अपने अंदर के कृष्ण नहीं दिखायी देते. मैं तो उन्हें मंदिरों में, गली कूचों में ढूँढता
हूँ. उनकी बात जो भगवद्गीता में उन्होंने बार
बार कही मैं जानना भी नहीं चाहता.
हे कृष्ण मुझे बताओ कैसे होगी मुझे स्वरूप अनुभूति. ओ मेरी आत्मा, ओ मेरे कृष्ण मैनें तुम्हें भुला दिया.
यह है हृद्य कि पुकार काश वो कृष्ण इसे सुन ले .
ReplyDeleteबसंत जी ,प्रणाम
ReplyDeleteचूँकि मेरा कोई जीवित गुरु नही है मैंने अब तक जिनके सिद्धांतो को समझा जाना उनमे बहुत से हुए जो मुझे अपने गुरु लगते है जैसे - बुद्ध,महावीर ओशो ,कृष्ण सभी मुझे भाते है .. गुरु की बात मै इसलिए कर रहा हु चूँकि जहा तक मैंने जाना समझा मै स्वयं ही ध्यानवस्था में शून्य-द्वार के सामने पल भर होकर वापस हो गया पर मेरी शायद मनश्चेतना की आवाज़ थी जिसने मुझे गुरु करने हेतु उस पल आवाज़ दी और मै लौट आया ..और शायद थोड़ा ज्ञान न होने से भय भी रहा होगा आगे मुझे अपने गुरु का इंतज़ार है ,जो मुझे सांसारिक जीवन में रहते हुए ही आगे का ज्ञान स्व-अनुभव करा सके !!
आपके लेख भी मेरी जिज्ञासाओं का समाधान कर रहे है जिसके लिए मै आपका आभारी हु
कृपया मैंने जो देखा जाना उसका आप भी मुझे थोड़ा ज्ञान दीजिये की वह क्या था ..क्या वही आत्मा थी जो प्रवेश द्वार पे से लौट आई ? और क्या वही भीतरी चेतना की प्रज्ञा थी जिसने मुझे गुरु करने हेतु आवाज़ लगाई थी ? मेरी मेल id -- roopesh.parihar@gmail.com है !!