यह पूर्णतया वैज्ञानिक रूप से स्थापित सत्य है कि महाविस्फोट से इस सृष्टि का निर्माण हुआ. एक असीमित घनत्व वाले एक बिंदु के बराबर पदार्थ से निरन्तर विस्तारित होने वाले ब्रह्मांडो का निर्माण हुआ और होता जा रहा है. वैज्ञानिक यह भी स्पष्ट करते हैं कि यह विस्फोट बम के विस्फोट जैसा नहीं था. यह गुब्बारे की तरह का फूलना था. इसी क्रम में डीहैड्रोनकोलाइडर द्वारा उच्चतम उर्जा कणों को टकराकर गोड पार्टिकल खोजे गए या खोजे जा रहे हैं. गोड पार्टिकल नाम इसलिए दिया गया क्योकि हमारे दिमाग में भरा है कि ईश्वर (गोड) अनन्त प्रकाशमय है, अनन्त उर्जामय है.
मेरा प्रश्न यहाँ से शुरू होता है. यह पदार्थ कहाँ से आया ? अधिक गहराई से जानने कि कोशिश करें तो उच्चतम उर्जा कणों को टकराकर प्राप्त उर्जा कहाँ से आयी?
स्रष्टि परम विशुद्ध ज्ञान का विस्तार है. ज्ञान जड़ हो सकता है पर जड़ ज्ञान नहीं हो सकता. इसलिए ज्ञान अनादि सत्ता है. सृष्टि का निर्माण का आदि कारण ज्ञान है जिसमे आदि अवस्था में कोई हलचल नहीं थी, कोई स्पंदन नहीं था. प्रत्येक का निश्चित स्वभाव होता है. इस कारण शांत ज्ञान में ज्ञान का स्फुरण हुआ और ज्ञान शक्ति तथा क्रिया शक्ति का उदय हुआ. ज्ञान और क्रिया शक्ति के भिन्न भिन्न मात्रा में मिलने से त्रिगुणात्मक प्रकृति का विस्तार होने लगा .इसे मानव मस्तिष्क के अध्ययन से भी जाना जा सकता है. सामान्यतः भिन्न भिन्न प्रकार की मस्तिष्क तरंगे किसी भी मनुष्य में भिन्न भिन्न अवस्थाओं में देखी जाती हैं जैसे क्रियाशील अवस्था में बीटा तरंग, गहरी नीद में डेल्टा तरंग आदि. इसी प्रकार परम ज्ञान में पहली अवस्था में हाई डेल्टा तरंग स्वतः उत्पन्न हुई जिससे ज्ञानशक्ति और क्रिया शक्ति विस्तृत हुई और बीटा तरंग फैलनेलगीं. यह रेडिएन्ट उर्जा लगातार निकलती गयी और कालांतर में वैज्ञानिक अल्बर्ट आयनस्टीन के सूत्र E=mc2 के आधार पर घनीभूत हुई और पदार्थ बना. इस प्रकार सृष्टि का विस्तार होता गया और आज भी हो रहा है. हिंदू इस परम विशुद्ध ज्ञान को परमात्मा, भगवान, शब्दब्रह्म. अव्यक्त कहते हैं, बाइबिल ने इसे शब्द (WORD) कहा है, बौद्ध बोध कहते हैं, सिक्ख शबद, नूर और जैन मोक्ष. यह पूर्णतया वैज्ञानिक एवम सत्य है की कोई जड़ पदार्थ चेतन में न बदल सकता है, न चेतन को पैदा कर सकता है अतः सृष्टि का कारण परम ज्ञान है.
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