यह सारी दुनियां अहँकारी है. एक दूसरे को अहँकारी समझता है. किसी को अहँकारी कह दिया जाय तो वह तिलमिला उठता है. आपको यदि कोई निरहंकारी मिल जाय तो उससे मुझे मिला देना. जब सब अहँकारी हैं फिर छिपाते क्यों हो, छिपते क्यों हो,हमाम में सब नंगे.
यह अहँकार क्या है? यह आत्मा के तेज से उत्पन्न होता है. इसी के कारण मैं कर्ता हूँ, मैं भोगने वाला हूँ इसका अभिमान होता है. यह हमारी बुद्धि में,मन में, इन्द्रियों में स्थित होकर सदा मैं हूँ का अभिमान करता है. यही सुखी होता है यही दुखी होता है.यह बहुत ही निपुण है, पुराणों में इसे दक्ष प्रजापति कहा है, जिसका बध परम बुद्धि शिव -शंकर द्वारा हुआ फिर भी यह अमर है. अमर होने के कारण यह सभी जीवों में व्याप्त रहता है. मैं सभी अहंकारियों को सादर नमन करता हूँ.
अतः अहँकार से दुश्मनी छोड़ दोस्ती कर लें. इसको जाने, इसको पहचाने क्योकि यह आत्मतत्व के सबसे नजदीक है. इसके द्वारा आत्मा को जाने. इसे योग बना लें.अहँकार योग सबसे सरल सबसे व्यवहारिक.
मैं कौन हूँ का निरन्तर चिन्तन अहँकार को परम पूर्ण शुद्ध ज्ञान में बदल देगा और स्व अर्थात आत्म अनुभूति उपलब्ध होगी.
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ReplyDeleteअहँकार आत्मा से प्रकट होता है, परम बोधमय आत्मा को तमोगुणी आवरण शक्ति जब पूर्णतया ढक लेती है और आत्मा के ढक जाने से आत्म तेज से व्याप्त यह अहँकार स्वयं आच्छादित हो जाता है. आत्मतत्व के छिप जाने से जीव शरीर को अज्ञान से मैं हूँ ऐसा मानाने लगता है.
ReplyDeleteपरन्तु जो इसको जान लेता है इसके द्वारा स्वरुप अनुभूति को प्राप्त होता है.