संसार में ज्यादातर लोग किसी न किसी रूप में ईश्वर की पूजा, उपासना, प्रार्थना करते हैं.कोई उसे गोड कहता है, कोई अल्लाह , कहीं वह राम है तो कृष्ण भी उसी का नाम है. सभी उसे परंपरागत तरीके से पूजते हैं,पूजा में कहीं भय है, कहीं लालच तो कहीं अज्ञान है. यह अज्ञान इतना अधिक है की एक धर्मं अथवा पंथ की बात दूसरा नहीं सुनता है. कोई कहता है वह अखंड ज्योति है, कोई उसे सात असमानो के ऊपर बताता है, कोई कहता है वह गोलोक, सतलोक में रहता है. कोई उसे निर्गुण कहता है, कोई उसे सगुण कहता है.
सभी कही न कही भ्रम में हैं,क्योकि जिज्ञासा नहीं है.जिज्ञासा नहीं तो ज्ञान केसे होगा. जब ज्ञान नहीं तो परमात्मा के बारे में सब बात बेमानी हैं. आत्मा -परमात्मा तो शब्द हैं.
परमात्मा पूर्ण विशुद्ध ज्ञान है,इसी कारण जड़ से चेतन और चेतन से जड़ हो जाता है. जो उसे जान लेता है वह परम ज्ञानवान हो जाता है. इसे ही इलहाम कहते हैं,अहम् ब्रह्मास्मि यही है. सृष्टि में जड़- चेतन परम ज्ञान का विस्तार है. जो खोजेगा वह पायेगा, उसे ही बोध होगा.
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