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सुषुप्ति और समाधि
निद्रा की सुषुप्ति अवस्था में जीव परमतत्व में विलीन हो जाता है पुनः अपनी प्रकृति और कर्म प्रारब्ध लेकर जागता है, फिर जहाँ से चले वहीँ पहुँच जाता है अतः सुषुप्ति से बोध नहीं होता.
निद्रा में स्वप्नावस्था का समय लम्बा होता है सुषुप्ति का समय कुछ ही मिनिट का होता है जहाँ संसार और प्रारब्ध है. इसलिए समाधि का रास्ता चुना गया जहां सुषुप्ति भी है और बोध भी है.
सुषुप्ति अवस्था में इन्द्रयाँ, मन, बुद्धि, प्रकृति अपने कर्मो के साथ ज्ञान में लय हो जाती है पुनः स्वप्नावस्था अथवा जागाने पर ज्ञान को आच्छादित कर देह में चारों ओर फैल जाती हैं. अतः सुषुप्ति का लाभ मात्र इतना है कि ज्ञान के स्पर्श मात्रा इनमें स्फूर्ति का संचरण हो जाता है. यही क्रम म्रत्यु के पश्चात भी चलता है.
बोध केवल जाग्रत अवस्था में ही हो सकता है.जहाँ इन्द्रियां, मन, बुद्धि जाग्रत अवस्था में बोध को प्राप्त होती हैं. उस समय उस परम ज्ञान ,परम आनन्द, परम शांति का लाभ करते हुए पुरुष संसार भूल जाता है, देह को भूल जाता है, यही समाधि है.
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