Saturday, 9 July 2011

PARMATMA: BHAGWADGEETA - WHAT AFTER DEATH?



गीता शास्त्र में श्री भगवान द्वारा मृत्यु के समय जीवात्मा किस प्रकार देह का त्याग करता है इसे सुस्पष्ट किया गया है। कर्मेन्द्रियां अपना कार्य बन्द कर देती हैंउनका ज्ञानजिसके द्वारा वह संचालित होती हैंज्ञानेन्द्रियों में स्थित हो जाता है। ज्ञानेन्द्रियां अपना ज्ञान छोड़ देती हैं और वह ज्ञान विषय वासनाओं एंव प्रकृति सहित पंच भूतों में स्थित हो जाता है। पंच भूत भी ज्ञान छोड़ देते हैंवह गन्ध में स्थित हो जाता है। गन्धरस में स्थित हो जाती है। रसप्रभा में स्थित हो जाती है। प्रभास्पर्श में स्थित हो जाती है। स्पर्शशब्द में स्थित हो जाता है। शब्द मन मेंमन बुद्धि मेंबुद्धि अहंकार मेंस्थित हो जाती है। अहंकार  अपरा (त्रिगुणात्मक) प्रकृति में स्थित हो जाता है। त्रिगुणात्मक प्रकृति (अपरा) जीव प्रकृति (परा) में स्थित हो जाती है। जीव अव्यक्त में अपने कर्मों अपनी प्रकृति के साथ स्थित हो जाता है।

 पुनः अव्यक्त से ही जीव अपनी प्रकृति और कर्मों के साथ नवीन शरीर में बीज रूप से स्थित होकर शरीर धारण करता है तथा पूर्व जन्म की प्रकृति और कर्मानुसार कर्मफल भोगता है और यह क्रम चलता रहता है। यह सत्य है कि बीज का नाश नहीं होता है।

 जीव मृत्यु के बाद किसी भी लोक में स्वप्नवत रहता है। स्वप्न में यदि कोई राजा है या कोई विषय भोग करता है तो नींद खुलने तक वह उसका पूर्ण आनन्द लेता है। इसी प्रकार यदि कोई मुनष्य स्वप्न में मल मूत्र में पड़ा रहता हैआग में जलाया जाता है अथवा अन्य कोई यातना भोगता हैतो उस यातना को भी पूर्ण रूप से स्वप्नवत अवस्था में भोगता है। मृत्यु के बाद जीवात्मा भी देह त्यागकर पहले घोर निद्रावस्था में होता है पुनः स्वप्नावस्था में आता है और वहाँ कुछ समय या लम्बे समयजो सैकड़ों वर्षों का भी हो सकता है। परन्तु आत्म स्थित योगी पुरूष जब देह त्याग करते हैं तो उनके संकल्प विकल्प समाप्त हो जाते हैंउनकी विषय वासनाएं समाप्त हो जाती हैं। उनका ज्ञान पूर्ण और शुद्ध हो जाता है। वह ज्ञानेन्द्रियों से लेकर आत्मा तक परम शुद्ध अवस्था के कारण आत्म रूप में जब स्थित होता है तो परम शुद्ध होता हैउसमें विषय वासनाऐंकर्म बन्धन नहीं होते। वह देह से अलग हो जाता हैवह घोर निद्रावस्था अथवा स्वप्नावस्था से परे हो जाता है। स्वर्ग-नरक या अन्य दिव्य लोक उसके लिए नहीं होते क्यों कि वह प्रकृति  बन्धन से मुक्त हो जाता है। समाधि अवस्था में केवल पूर्ण एवं शुद्ध ज्ञान मेंजिसमें कोई हलचल नहींतरंग नहींस्थित रहता है.
आत्मा ज्ञान का MOLECULE है.वह जब पदार्थ को  चैतन्य करता है तो जीवन है, पदार्थ में जब वह सुप्त हो जाता है अथवा जब ज्ञान का संचरण रुक जाता है तो मृत्यु है.

No comments:

Post a Comment